ALONE
टूट टूट कर मैं बिखर रहा हूं
कोई देखो तो मुझे में गीर रहा हूं,,
मैं भरा हुआ हूं बादलों के जैसा
धीरे धीरे मैं जमीं से मिल रहा हूं,,
मनन में हवाओं का सेलाब है
पता नहीं मैं क्यों डर रहा हूं,,
जैसा हूं कोई वैसा समझ नहीं रहा
मैं खुद में ही बदल रहा हूं,,
मतलबी है जब सब यहां तो
फिर मै क्यों फिक्र कर रहा हूं,,
ज़िन्दगी को अपनी मैं कुछ और ही
समझ रहा हूं
मैं हर एक पल में घुट रहा हूं ,,
मैं किसी कि हंसी नहीं दूसरों का
मजाक बन रहा हूं
ऐसा लगता है जैसे मैं सब भूल रहा हूं
मैं शायद मर रहा हूं
मैं शायद मर रहा हूं ।
|
0 Comments