जो अपने थे सब के सब पराए थे
एक के बाद एक घर आए थे
गले से लगा के, दो आंसू भाहा के
घर से बहार निकलते ही मुस्कुराए थे
जो अपने थे सब के सब पराए थे
जब तक जिंदा थे तो सब ने मुंह बनाए थे
अब रहे नहीं तो फूलों कि माला ले कर आए थे
कभी बात करने से भी कतराते थे
अब रो रो कर गले लगाते थे
हुए ऐसे अपने प्राय थे मरने के बाद घर आए थे
जो अपने थे सब के सब पराए थे
सब झूट बोलने यहां आए थे
एक सच बोलकर कितने झूट छुपाए थे
जो अपने थे सब के सब पराए थे
RAJ RATHOR_ISOLATE THINKER
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